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क्या हुआ जब भगवान ने दहेज का सामान वैद्य जी को दिया... Hindi story

April 26, 2020
शहर में एक वैधजी हुआ करते थे, जिनका मकान  एक पुरानी सी इमारत में था। वैधजी रोज  सुबह दुकान जाने से पहले पत्नी को कहते कि जो कुछ आज के दिन के लिए तुम्हें आवश्यकता है एक चिठ्ठी में लिख कर दे। पत्नी लिखकर दे देती । आप दुकान पर आकर पहले वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होती। उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही हुक्म के अनुसार में तेरी बंदगी  छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। ज्योंही तू मेरी आज की जरूरी पैसो की व्यवस्था कर देगा।उसी समय यहां से उठ जाऊँगा और फिर यही होता। कभी सुबह साढ़े नौ, कभी दस बजे वैधजी रोगियों की समाप्ति कर वापस अपने घर चले जाते।



एक दिन वैधजी ने दुकान खोली। रकम का  हिसाब के लिए चिठ्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आंखों के सामने तारे चमकते हुए नजर आ गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने तंत्रिकाओं पर काबू पा लिया। आटे दाल चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, बेटी के दहेज का सामान। कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की कीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा '' यह काम परमात्मा का हे, परमात्मा जाने।''
एक दो मरीज आए थे। उन्हें वैधजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दुकान के सामने आकर रुकी। वैधजी ने कार या साहब को कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे।
दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेडबूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैधजी ने कहा कि अगर आप अपने लिए दवा लेनी है तो उधर स्टूल पर आ ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन  करे। वह साहब कहने लगे वैधजी मुझे लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं। लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आप की दुकान पे आया हूँ
आप को पिछली मुलाकात सुनाता हूँ फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहां आया था तो में खुद नहीं आया था ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि दिल्ली से सुंदरनगर अपनी कार में अपने पैतृक घर जा रहा था। सही दुकान के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर कराने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में में कार के पास खड़ा हूँ। आप मेरे पास आए और दुकान की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें। मैं शुक्रिया अदा किया और कुर्सी पर आकर बैठ गया।
ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी। एक छोटी सी बच्ची भी यहाँ अपनी मेज के पास खड़ी थी और बार बार कह रही थी '' चलें नां, मुझे भूख लगी है। आप इसे कह रहे थे बेटी थोड़ा सब्र करो चलते हैं।
मैं यह सोच कर कि इतनी देर आप के पास बैठा हूँ। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी साहब में 5,6 साल से इंग्लैंड में हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चों के सुख से वंचित हूँ। यहां भी इलाज किया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत में निराशा के सिवा और कुछ नहीं देखा। आपने कहा मेरे भाई! माफ करो और अपने भगवान से निराश न हो  । याद रखें उसके खजाने में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। औलाद, माल व इज्जत और ग़मी खुशी, जीवन मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। किसी वैधजी या डॉक्टर के हाथ नहीं होती और न ही किसी दवा में  होती है। अगर होनी है तो भगवान के हुक्म से होनी है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे और साथ पुड़ीया भी बना रहे थे। सभी दवा आपने 2 भागों में विभाजित कर लिफाफा में डाली फिर मुझसे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? मैंने बताया कि मेरा नाम कृष्णलाल है। आप ने एक लिफाफा पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखा। फिर दोनों लिफाफे एक बड़े लिफाफा रख दवा का उपयोग करने का तरीका बताया। मैंने बेदिली से दवाई ले ली क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पूछा कितने पैसे? आपने कहा बस ठीक है। मैं जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है।
मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी रकम वैधजी ने भगवान से मांगी थी वह गुरु ने दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में शर्मिंदा हुआ कि मेरे कितने घटिया विचार था और यह सरल वैधजी कितने महान व्यक्ति है। मैं जब घर जा कर बीवी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। वैधजी आज मेरे घर में तीन तीन फूल खेल रहे हैं।
हम जीवन साथी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। जब भी इंडिया में छुट्टी में आया। कार उधर रोकी लेकिन दुकान बंद पाया। कल दोपहर भी आया था दुकानबंद थी। एक आदमी पास ही खड़ा हुआ था। उसने कहा कि अगर आप वैधजी से मिलना है तो सुबह 9 बजे अवश्य पहुंच जाएं वरना उनके मिलने की कोई गारंटी नहीं। इसलिए आज सवेरे सवेरे आपके पास आया हूँ।

वैधजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड सेटल हो चुका है। केवल हमारे एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ इंडिया में रहती है। हमारी भांजी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी थी। इस भांजी की शादी का सारा खर्च मैंने अपने ज़िम्में लिया था। 10 दिन पहले इसी कार में उसे मैं दिल्ली अपने रिश्तेदारों के पास भेजा कि शादी के लिए जो चीज़ चाहे खरीद ले। उसे दिल्ली जाते ही बुखार हो गया लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। बुखार की गोलियाँ डिस्प्रिन आदि खाती और बाजारों में फिरती रही। बाजार में फिरते फिरते अचानक बेहोश होकर गिरी। वहां से उसे अस्पताल ले गए। वहां जाकर पता चला कि इसे 106 डिग्री बुखार है और यह गर्दन तोड़ बुखार है। वह कोमा की हालत ही में इस दुनिया से चली गयी ।
इसके मरते ही न जाने क्यों मुझे और मेरी पत्नी को आपकी बेटी का ख्याल आया। हमने और हमारे पूरे परिवार ने फैसला किया है कि हम अपनी भांजी के सभी दहेज का साज़-सामान आपके यहां पहुंचा देंगे। शादी जल्दी हे तो व्यवस्था खुद करेंगे और अगर अभी कुछ देर है तो सभी खर्चों के लिए पैसा आप को नकदी पहुंचा देंगे। आप को ना नहीं करनी। अपना घर दिखा दें ताकि माल ट्रक वहां पहुंचाया जा सके।

वैधजी हैरान-परेशान हुए  बोले '' कृष्णलाल जी आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा, मेरा इतना मन नहीं है। मैं तो आज सुबह जब पत्नी के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी यहाँ आकर खोलकर देखा तो मिर्च मसाला के बाद जब मैंने ये शब्द पढ़े '' बेटी के दहेज का सामान '' तो तुम्हें पता है मैंने क्या लिखा। आप खुद यह चिठ्ठी जरा देखें।   वहां उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि '' बेटी के दहेज '' के सामने लिखा हुआ था '' यह काम परमात्मा का हे, परमात्मा जाने।''
कृष्ण जी, यकीन करो आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि पत्नी ने चिठ्ठी पर बात लिखी हो और भगवान ने उसका उसी दिन व्यवस्था न कर दिया हो।
वाह भगवान वाह। तू  महान है तू मेहरबान है। आपकी भांजी की मौत का दुःख है लेकिन ईश्वर के रंगों से हैरान हूँ कि वे कैसे अपने रंग दिखाता है।
वैधजी ने कहा जब से होश संभाला एक ही पाठ पढ़ा कि सुबह परमात्मा का आभार  करो शाम को अच्छे दिन गुजरने का आभार करो  , खाने समय उसका  आभार करो ,आभार मेरे मालिक तेरा बहुत बहुत आभार।
क्या हुआ जब भगवान ने दहेज का सामान वैद्य जी को दिया... Hindi story  क्या हुआ जब भगवान ने दहेज का सामान वैद्य जी को दिया... Hindi story Reviewed by Shyam Dubey on April 26, 2020 Rating: 5

बादल और राजा की कहानी..... Hindi Story

April 13, 2020

चुनैतियों पर काबू पाने की सीख देती प्रेरणादायक कहानी



बादल अरबी नस्ल का एक शानदार घोड़ा था। वह अभी 1 साल का ही था और रोज अपने पिता – “राजा” के साथ ट्रैक पर जाता था। राजा

घोड़ों की बाधा दौड़ का चैंपियन था और कई सालों से वह अपने मालिक को सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार का खिताब दिला रहा था।

बादल भी राजा की तरह बनना चाहता था…लेकिन इतनी ऊँची-ऊँची और कठिन बाधाओं को देखकर उसका मन छोटा हो जाता और वह सोचने लगता कि वह कभी अपने पिता की तरह नहीं बन पायेगा।

एक दिन जब राजा ने बादल को ट्रैक के किनारे उदास खड़े देखा तो बोला, ” क्या हुआ बेटा तुम इस तरह उदास क्यों खड़े हो?”

“कुछ नहीं पिताजी…आज मैंने आपकी तरह उस पहली बाधा को कूदने का प्रयास किया लेकिन मैं मुंह के बल गिर पड़ा…मैं कभी आपकी तरह काबिल नहीं बन पाऊंगा…

राजा बादल की बात समझ गया। अगले दिन सुबह-सुबह वह बादल को लेकर ट्रैक पर आया और एक लकड़ी के लट्ठ की तरफ इशारा करते हुए बोला- ” चलो बादल, ज़रा उसे लट्ठ के ऊपर से कूद कर तो दिखाओ।”

बादला हंसते हुए बोला, “क्या पिताजी, वो तो ज़मीन पे पड़ा है…उसे कूदने में क्या रखा है…मैं तो उन बाधाओं को कूदना चाहता हूँ जिन्हें आप कूदते हैं।”

“मैं जैसा कहता हूँ करो।”, राजा ने लगभग डपटते हुए कहा।

अगले ही क्षण बादल लकड़ी के लट्ठ की और दौड़ा और उसे कूद कर पार कर गया

शाबाश! ऐसे ही बार-बार कूद कर दिखाओ!”, राजा उसका उत्साह बढाता रहा।

अगले दिन बादल उत्साहित था कि शायद आज उसे बड़ी बाधाओं को कूदने का मौका मिले पर राजा ने फिर उसी लट्ठ को कूदने का निर्देश दिया।

करीब 1 हफ्ते ऐसे ही चलता रहा फिर उसके बाद राजा ने बादल से थोड़े और बड़े लट्ठ कूदने की प्रैक्टिस कराई।

इस तरह हर हफ्ते थोड़ा-थोड़ा कर के बादल के कूदने की क्षमता बढती गयी और एक दिन वो भी आ गया जब राजा उसे ट्रैक पर ले गया।

महीनो बाद आज एक बार फिर बादल उसी बाधा के सामने खड़ा था जिस पर पिछली बार वह मुंह के बल गिर पड़ा था… बादल ने दौड़ना शुरू किया… उसके टापों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी… 1…2…3….जम्प….और बादल बाधा के उस पार था।

आज बादल की ख़ुशी का ठिकाना न था…आज उसे अन्दर से विश्वास हो गया कि एक दिन वो भी अपने पिता की तरह चैंपियन घोड़ा बन सकता है और इस विश्वास के बलबूते आगे चल कर बादल भी एक चैंपियन घोड़ा बना।

दोस्तों, बहुत से लोग सिर्फ इसलिए goals achieve नहीं कर पाते क्योंकि वो एक बड़े challenge या obstacle को छोटे-छोटे challenges में divide नहीं कर पाते। इसलिए अगर आप भी अपनी life में एक champion बनना चाहते हैं…एक बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो systematically उसे पाने के लिए आगे बढिए… पहले छोटी-छोटी बाधाओं को पार करिए और ultimately उस बड़े goal को achieve कर अपना जीवन सफल बनाइये।

Moral of the story is: जल्दी हार मत मानिए, बल्कि छोटे से शुरू करिए और प्रयास जारी रखिये…इस तरह आप उस लक्ष्य को भी प्राप्त कर पायेंगे जो आज असंभव लगता है




बादल और राजा की कहानी..... Hindi Story बादल और राजा की कहानी..... Hindi Story Reviewed by Shyam Dubey on April 13, 2020 Rating: 5

उस दिन माँ के साथ जब मामूली–सी बात पर उसका झगड़ा हो गया Story

April 10, 2020
उस दिन माँ के साथ जब मामूली–सी बात पर उसका झगड़ा हो गया तो वह बिना नाश्ता किए ही ड्यूटी पर जाने के लिए बस–अड्डे की ओर चल पड़ा। घर से निकलते वक्त माँ के यह बोल उसे खंजर की तरह चुभे,“ तेरी आस में तो मैने तेरे अड़ियल और नशेबाज बाप के साथ अपनी सारी उम्र गुजार दी, कि चलो बेटा बना रहे, और दुष्ट तू
भी…।”



माँ के शेष बोल आँसूओं में भीग कर रह गए। वह जोर–जोर से
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रोने लगी। घर से बस–अड्डे तक का सफर तय करते हुए उसे बार–बार यही ख्याल आता रहा कि वह माँ के कहे बोल नहीं बल्कि माँ द्वारा सृजित एक–एक अरमान को पाँवों तले रौंदता चला जा रहा है।
पर वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा। बस–अड्डे पर पहुँचकर जब वह अपनी बस की ओर बढ़ा तो देखा, माँ हाथ में रोटी वाला डिब्बा लिए उसकी बस के आगे खड़ी थी। बेटे को देखते ही माँ ने रोटी वाला डिब्बा उसकी ओर बढ़ा दिया। माँ के खामोश होंठ जैसे आँखों पर लग गए हों। एकाएक अनेक आँसू माँ की पलकों का साथ छोड़ गए।
माँ को ऐसे रोते देख कर उससे एक कदम भी आगे
नहीं बढ़ाया गया और अगले ही पल वह माँ के चरणों में था।
तेरे जैसा कोई नही माँ....


मां सलामत है तो दुनिया में ऐसी कोई कयामत नहीं जो तेरा बाल भी बांका कर सके मां को खुश रखो प्यारो ऊपरवाला आपको सदा खुश रखेगा


उस दिन माँ के साथ जब मामूली–सी बात पर उसका झगड़ा हो गया Story उस दिन माँ के साथ जब मामूली–सी बात पर  उसका झगड़ा हो गया Story Reviewed by Shyam Dubey on April 10, 2020 Rating: 5

बेटे और एक वृद्ध पिता का रात्रि का भोजन प्रेरणादायक कहानी.... Myjokesadda

April 10, 2020
एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर
गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।
रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।




खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके
कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा
पहनाया और फिर बाहर लाया।
सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के
साथ
बाहर जाने लगा।
तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा ” क्या

तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? ”
बेटे ने जवाब दिया” नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर
नहीं जा रहा। ”
वृद्ध ने कहा ” बेटे, तुम यहाँ
छोड़ कर जा रहे हो,
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद
(आशा)। ”
आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना
पसंद नहीँ करते
और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता
नहीं ठीक से खाया भी नहीं जाता आप तो घर पर ही रहो वही अच्छा
होगा.
क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी
गोद मे उठा कर ले जाया
करते थे,
आप जब ठीक से खा नही
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर
जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी
फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते हैं???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये…
क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होगें।
बेटे और एक वृद्ध पिता का रात्रि का भोजन प्रेरणादायक कहानी.... Myjokesadda बेटे और एक वृद्ध पिता का रात्रि का भोजन प्रेरणादायक कहानी.... Myjokesadda Reviewed by Shyam Dubey on April 10, 2020 Rating: 5

मां और बेटे की प्रेरणादायक कहानी जो आपको भावुक कर देगी Myjokesadda

April 05, 2020
1.     प्रेरणास्पद कहानी...
अपनी बुढ़ी सास से बहु ने कहा -:
"माँ जी, आप अपना खाना बना लेना, मुझे और इन्हें आज एक पार्टी में जाना है ...!!"
बुढ़ी माँ ने कहा -: "बेटी मुझे गैस चुल्हा जलाना नहीं आता ...!!"
तो बेटे ने कहा -: "माँ, घर से थोड़ी दूर जो काली माता का मंदिर है उसमें आज भंडारा है , तुम वहाँ चली जाओ खाना बनाना भी नहीं पड़ेगा .!!!"
माँ चुपचाप अपनी चप्पल पहन कर मंदिर की ओर हो चली.....
यह पुरा वाक्या 8 साल का बेटा रोहन सुन रहा था |



पार्टी में जाते वक्त रास्ते में रोहन ने अपने पापा से कहा -:
"पापा, मैं जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ना तब मैं भी अपना घर किसी मंदिर के पास
ही बनाऊंगा ....!!!
माँ ने उत्सुकतावश पुछा -: क्यों बेटा ?
रोहन ने कहा -: क्योंकि माँ, जब मुझे भी किसी दिन ऐसी ही किसी पार्टी में जाना होगा
तब तुम भी तो किसी मंदिर में भंडारे में खाना खाने जाओगी ना और मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कहीं दूर के मंदिर में जाना पड़े....
रोहन का जवाब सुनकर उस बेटे और बहु का सिर शर्म से नीचे झुक गया जो अपनी माँ को मंदिर में छोड़ आए थे....




2.    पिता के मरने के बाद बेटा अपनी माँ को "ओल्ड ऐज"
होम छोड़ के आया...
कुछ सालो बाद ओल्ड ऐज होम से फ़ोन आया..
तुम्हारी माँ मरणासन है जल्दी आ जाओ !
बेटा माँ से मिलके भावुक हो के बोला ":-"
माँ.. बता मै क्या करू तेरे लिए".
माँ ने कहा बेटा :- "इस कमरे में एक पंखा लगवा दे" !

बेटे ने कहा:- "इतने साल तो तुम बिना पंखे के रही अब जब मरने वाली हो तो पंखा लगाने के लिए क्यों कह रही हो" !
🌼
माँ ने कहा:- "बेटा मैंने तो किसी तरह गुजारा कर लिया लेकिन.........
जब तेरा बेटा तुझे इस कमरे में भेजेगा तो तू बिना पंखे के रह नही पायेगा...!!

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मां और बेटे की प्रेरणादायक कहानी जो आपको भावुक कर देगी Myjokesadda  मां और बेटे की प्रेरणादायक कहानी जो आपको भावुक कर देगी  Myjokesadda Reviewed by Shyam Dubey on April 05, 2020 Rating: 5

एक दुखियारी बूढ़ी मां को एयरपोर्ट पर कैसे छोड़ गया😭😭😭... रोना आ जाएगा

April 04, 2020
हैलो माँ ...
में रवि बोल रहा हूँ....,कैसी हो माँ....?
मैं.... मैं…ठीक हूँ बेटे.....,ये बताओ तुम और बहू
दोनों कैसे हो? हम दोनों ठीक है माँ...आपकी बहुत याद आती है…,...अच्छा सुनो माँ,में अगले महीने
इंडिया आ रहा हूँ..... तुम्हें लेने। क्या...? हाँ माँ...., अब हम सब साथ ही रहेंगे....,नीतू कह रही थी माज़ी को अमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत परेशान हो रही होंगी।







हैलो ....सुन रही हो माँ...?“हाँ...हाँ बेटे...“,बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह निकली,बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा।
जीवन के सत्तर साल गुजार चुकी सावित्री ने जल्दी से अपने पल्लू से आँसू पोंछे और बेटे से बात करने लगी।



पूरे दो साल बाद बेटा घर आ रहा था। बूढ़ी सावित्री ने मोहल्ले भरमे दौड़ दौड़ कर ये खबर सबको सुना दी। सभी खुश थे की चलो बुढ़ापा चैनसे बेटे और बहू के साथ गुजर जाएगा। रवि अकेला आया था, उसने कहा की माँ हमे जल्दी ही वापिस जाना है इसलिए जो भी रुपया पैसा किसी से लेना है वो लेकर रख लों और तब तक मे किसी प्रोपेर्टी डीलर से मकान की बात करता हूँ। “मकान...?”,माँ ने पूछा। हाँ माँ,अब ये मकान बेचना पड़ेगा वरना कौन इसकी देखभाल करेगा। हम सब तो अब अमेरिका मे ही रहेंगे। बूढ़ी आंखो ने मकान के कोने कोने को ऐसे निहारा जैसे किसी अबोध बच्चे को सहला रही हो।




आनन फानन और औने-पौने दाम मे रवि ने
मकान बेच 
दिया। सावित्री देवी ने वो जरूरी सामान
समेटा जिस से उनको बहुत ज्यादा लगाव था। रवि टैक्सी मँगवा चुका था। एयरपोर्ट पहुँचकर रवि ने
कहा,”माँ तुम यहाँ बैठो मे अंदर जाकर सामान
की जांच और बोर्डिंग और विजा का काम निपटा लेता हूँ।
““ठीक है बेटे। “,सावित्री देवी वही पास की बेंच
पर बैठ गई। काफी समय बीत चुका था। बाहर
बैठी सावित्री देवी बार बार उस दरवाजे की तरफ
देख रही थी जिसमे रवि गया था लेकिन अभी तक
बाहर नहीं आया।‘शायद अंदर बहुत भीड़ होगी... सोचकर बूढ़ी आंखे फिर से टकटकी लगाए देखने लगती। अंधेरा हो चुका था। 




एयरपोर्ट के बाहर गहमागहमी कम हो चुकी थी। “माजी..., किस से मिलना है?”, एक कर्मचारी ने वृद्धा से पूछा । “मेरा बेटा अंदर गया था..... टिकिट लेने, वो मुझे अमेरिका लेकर जा रहा है ....”, सावित्री देबी ने घबराकर कहा। “लेकिन अंदर तो कोई पैसेंजर नहीं है, अमेरिका जाने वाली फ्लाइट तो दोपहर मे ही चली गई। क्या नाम था आपके बेटे का?  कर्मचारी ने सवाल किया। “र....रवि....”, सावित्री के चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आई। कर्मचारी अंदर गया और कुछ देर बादबाहर आकर बोला, “माजी.... आपका बेटा रवि तो अमेरिका जाने वाली फ्लाइट से कब का जा चुका...। ”“क्या....”,वृद ्धा की आंखो से गरम आँसुओं का सैलाब फुट पड़ा। बूढ़ी माँ का रोम रोम कांप उठा। किसी तरह वापिस घर पहुंची जो अब बिक चुका था।



 रात में घर के बाहर चबूतरे पर ही सो गई। सुबह हुई तो दयालु मकान
मालिक ने एक कमरा रहने को दे दिया। पति की पेंशन से घर का किराया और खाने का काम चलने लगा। समय गुजरने लगा। एक दिन मकान मालिक ने वृद्धा से पूछा। “माजी... क्यों नही आप अपने
किसी रिश्तेदार के यहाँ चली जाए, अब आपकी उम्र भी बहुत हो गई,अकेली कब तक रह पाएँगी। ““हाँ, चली तो जाऊँ, लेकिन कल को मेरा बेटा आया तो..?,यहाँ फिर कौन उसका ख्याल रखेगा?“😭😭😭😭😭😭  


मां तो मां होती है मां को कभी दुखी मत करना😭




दोस्तों ऐसा कभी मत करना मां को दुखी करने वाला व्यक्ति संसार में कभी सुख से नहीं रह सकता है मां बाप तो भगवान के रूप होते हैं उन्हें हमेशा खुश रखना

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एक दुखियारी बूढ़ी मां को एयरपोर्ट पर कैसे छोड़ गया😭😭😭... रोना आ जाएगा एक दुखियारी बूढ़ी मां को एयरपोर्ट पर कैसे छोड़ गया😭😭😭...   रोना आ जाएगा Reviewed by Shyam Dubey on April 04, 2020 Rating: 5

जब लड़के ने सोचा कि मां-बाप को छोड़ दूं..... Myjokesadda

April 04, 2020
बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया ....
इतना गुस्सा था की गलती से पापा के जूते पहने गए ....
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा ....
और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...
जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे ,
तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें
है .....
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था ....
जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ...
मुझे पता है जरुर इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी ....
पता तो चले कितना माल छुपाया है .....
माँ से भी ...


इसीलिए हाथ नहीं लगाने देते किसी को..
जैसे ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया ...
मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है ....
मैंने जूता निकाल कर देखा .....
मेरी एडी से थोडा सा खून रिस आया था ...
जूते की कोई कील निकली हुयी थी दर्द तो हुआ पर
गुस्सा बहुत था .....
और मुझे जाना ही था ...
घर छोड़कर ...

जैसे ही कुछ दूर चला ....
मुझे पांवो में गिला गिला लगा.....
सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था ....
पाँव उठा के देखा तो जूते के तला टुटा था .....
जैसे तेसे लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा .......
पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी .....
मैंने सोचा ......
क्यों न पर्स की तलाशी ली जाये ....
मैंने पर्स खोला ....
एक पर्ची दिखाई दी ......
लिखा था
लैपटॉप के लिए 40 हजार उधार लिए
पर लैपटॉप तो घर मैं मेरे पास है ?
दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा ........
उसमे उनके ऑफिस की किसी हॉबी डे
का लिखा था उन्होंने हॉबी लिखी अच्छे जूते
पहनना ......ओह....अच्छे जुते पहनना ???
पर उनके जुते तो ...........!!!!
माँ पिछले चार महीने से हर पहली को कहती है नए जुते ले लो ...
और वे हर बार कहते .....
अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे ..
मैं अब समझा कितने चलेंगे
......तीसरी पर्ची ..........
पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी मोटर साइकिल ले जाइये ...
पढ़ते ही दिमाग घूम गया.....
पापा का स्कूटर .............
ओह्ह्ह्ह
मैं घर की और भागा........
अब पांवो मैं वो कील न चुभ रही थी ....
मैं घर पहुंचा .....
न पापा थे न स्कूटर ..............
ओह्ह्ह नही
मैं समझ गया कहाँ गए ....
मैं दौड़ा .....
और
एजेंसी पर पहुंचा......
# पापा वहीँ थे ...............
मैंने उनको गले से लगा लिया ...
और आंसुओ से
उनका कन्धा भिगो दिया 
.....नहीं...पापा नहीं........
मुझे नहीं चाहिए मोटर साइकिल.........
बस आप नए जुते ले लो और
मुझे अब बड़ा आदमी बनना है
वो भी आपके तरीके से ...
जब लड़के ने सोचा कि मां-बाप को छोड़ दूं..... Myjokesadda जब लड़के ने सोचा कि मां-बाप को छोड़ दूं..... Myjokesadda Reviewed by Shyam Dubey on April 04, 2020 Rating: 5
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